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Showing posts from April, 2024

"विपदा "

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  भविष्य की सबसे बड़ी  विपदा हो सकती है  ज़मीन का सूखना, हालाँकि वर्तमान की सबसे  बड़ी विपदा है  मानव की सिसकियों का सूखा पड़ना|

//तुम जहाँ भी रहते हो//

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  ये आदतन रूठी निगाहें ये महकी–महकी बाहें  कि दिल फ़रिश्ता बन बैठा है तुम्हारा नाम सुनकर ये उजला सा नूर ये लब, ये सुरूर मानो ख़ुदा ने भेजे हैं  एक पैग़ाम बनकर ज़िंदगी है की मानती नहीं तुम किसी की चाह हो मैं जो भटक जाता हूँ तुम वीराने की राह हो तुम्हारी तस्वीर को देख मेरा मन ये बातें करता है कि तुम जहाँ भी रहते हो मेरा दिल भी वहीं रहता है स्मृतियाँ, (१९ जनवरी)

पुराने और साधारण दिन

कुछ नया, कुछ अलग की ख़ोज में हम पुराने और साधारण हो जाते हैं... [ये पुराने और साधारण दिन हैं]   मेरे पास फ़िलहाल कुछ ऐसा नहीं है जिसे मैं नया कह सकूं। जिससे सबको बता सकूं कि मैं तुमसे अलग हूँ। अलग होना असल में अलग रहने से शुरू होता है। मैं हमेशा से सबसे अलग रहना चाहता था। इसलिए नहीं कि मुझे अलग होना था, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि मुझे उस शून्य को सुनना था जो बचपन में घर में अकेले खेलते वक्त सुनाई देता था। गर्मियों की छुट्टियों में ताश की ईमारत बनाता था। डर हवा का था कि एक ताश का पत्ता हिला तो सारे ताश मिट्टी में मिल जाएंगे। तब नहीं पता था कि जीवन उस एक ताश के पत्ते पर टिका हुआ है। जो सबके लिए अलग हो सकता है। मुझे इस नये घर में भी पुराना घर दिखता है। अब वो सपनों में भी आने लगा है। ख़ासकर वो एक खिड़की जो मेरे लिए धूप और बारिश दोनों को छूने का जरिया थी। स्कूल से विदा लेने तक वहाँ पढ़ाई की थी। पढ़ाई से ज्यादा वहाँ बैठकर लिखा था। लिखना यानी कुछ भी लिखना, जो मन बहलाने के लिए काफ़ी हो। हज़ार बातें हैं जिसे यादें कह सकते हैं।  हम कमरे में कभी अकेले नहीं रहते, हमेशा कोई न कोई छिपकली हमसे पहल...

लकीरें

हम मिट्टी से बने, ऊपर से पत्थर दिल पर भीतर से टूटे हुए लोग हैं जिन्होंने घरों से लेकर ईश्वर तक  पहाड़ों से लेकर नदियों तक बस लकीरें खींच डाली पर धरती पर चार लकीरें खींचने से  और उन चार हिस्सों को चार नाम देने मात्र से दुनिया नहीं बनती है दोस्त दुनिया बनाने के लिए लकीरें तोड़नी पड़ती हैं पर हमने न लकीरें तोड़ी न अपने उस टूटे हुए हिस्से के बारे में कुछ कहा वैसे कितना कुछ कहा जा सकता था टूटे हुए सपनों के बारे में रूठे हुए अपनों के बारे में पैरों के घाव के बारे में छोड़े हुए गांव के बारे में गुज़र गए लोगों के बारे में और कितना कुछ था लिखने को... पर हम चुप रहें; चुप रहें, इसलिए नहीं कि हमें कहना नहीं आता बस इसलिए क्योंंकि टूटे हुए पर लेकर परिंदे सिर्फ़  आसमान की ओर इशारा कर सकते हैं  पर किसी को उड़ना नहीं सीखा सकते। स्मृतियाँ, (२०२२)

जीवन एक सड़क है

वह सोच रही थी कि कौन सी किताब पढ़ी जाएं। पढ़ने के लिए बहुत सारा हैं पर चुनने के लिए बहुत कम। उसने अधूरी पढ़ी किताब चुनी। उस अधूरे पढ़े को कई महीने हो गए हैं। किताब लेकर वो बैठ गई पर वो अब किताब नहीं पढ़ रही है बल्कि अपने दिनभर के थकान का हिसाब लगा रही है। उस वक्त का हिसाब लगा रही है जब वो अपने होश खो बैठी थी। साथ ही सोच रही है कि और किस चीज़ का हिसाब लगाया जाए। हालाँकि वो हिसाब–किताब में अच्छी खासी कच्ची है। कोई उससे कुछ पैसे उधार ले जाए तो उसको वापस माँगना नहीं आता। कोई मज़ाक में चाय पिलाने को कह दे तो सच में चाय पीला देती है। एक बार किसी ने उससे कहा था “योग्यता तुम अपने दिमाग की सुना करो, दिल की सुनोगी तो भटक जाओगी।“ उस दिन के बाद उसने अपनी दिल की सुनना छोड़ दिया।   आज कॉलेज से आने में उसको देर हो गई क्योंकि रास्ते में ट्रैफिक इतना था कि पैदल चलने वाले लोग गाड़ियों से आगे निकल रहे थे। सड़क पर गाड़ियों की संख्या देखकर मैं डर गई थी। सुविधाएं किस हद तक जा रही हैं, इंसान कभी हद में नहीं रह सकता, उसको हमेशा सब हद के बाहर चाहिए। बस से उतरके उसको एक सड़क पार करनी पड़ती थी। वहाँ से एक सँकरी गली ...