जीवन एक सड़क है


वह सोच रही थी कि कौन सी किताब पढ़ी जाएं। पढ़ने के लिए बहुत सारा हैं पर चुनने के लिए बहुत कम। उसने अधूरी पढ़ी किताब चुनी। उस अधूरे पढ़े को कई महीने हो गए हैं। किताब लेकर वो बैठ गई पर वो अब किताब नहीं पढ़ रही है बल्कि अपने दिनभर के थकान का हिसाब लगा रही है। उस वक्त का हिसाब लगा रही है जब वो अपने होश खो बैठी थी। साथ ही सोच रही है कि और किस चीज़ का हिसाब लगाया जाए। हालाँकि वो हिसाब–किताब में अच्छी खासी कच्ची है। कोई उससे कुछ पैसे उधार ले जाए तो उसको वापस माँगना नहीं आता। कोई मज़ाक में चाय पिलाने को कह दे तो सच में चाय पीला देती है। एक बार किसी ने उससे कहा था “योग्यता तुम अपने दिमाग की सुना करो, दिल की सुनोगी तो भटक जाओगी।“ उस दिन के बाद उसने अपनी दिल की सुनना छोड़ दिया।  

आज कॉलेज से आने में उसको देर हो गई क्योंकि रास्ते में ट्रैफिक इतना था कि पैदल चलने वाले लोग गाड़ियों से आगे निकल रहे थे। सड़क पर गाड़ियों की संख्या देखकर मैं डर गई थी। सुविधाएं किस हद तक जा रही हैं, इंसान कभी हद में नहीं रह सकता, उसको हमेशा सब हद के बाहर चाहिए। बस से उतरके उसको एक सड़क पार करनी पड़ती थी। वहाँ से एक सँकरी गली में एक हॉस्टल था जहाँ वो रहती थी। मुझे सबसे ज्यादा डर सड़क पार करने का लगता है, मैं कभी मर गई तो सड़क वो जगह होगी। घर आते ही मैं सो गई थी पर जब मेरी आँख खुली तब घड़ी में शाम के सात बज रहे थे। 

“वक्त की कमी रहते हुए भी दिन इतने लंबे कैसे हो गए?” योग्यता खुद से सवाल करने लगी। एक ज़िंदगी में कितने सवाल आते होंगे, हम तो एक दिन के भी नहीं गिन सकते। आज उसने ज़िंदगी की दूसरी व्याख्या बना ली “ज़िंदगी एक सवाल है!”

अचानक से उसका सिर दर्द करने लगा। वो चाय बनाने किचन में गई तभी माँ का कॉल आया। घर से दूर रहने पर माँ के पास हमेशा पूछने के लिए दो सवाल और कहने के लिए एक बात रहती है। पहला सवाल ये कि खाना खा लिया क्या और दूसरा यह कि खाने में क्या खाया। कहने के लिए माँ के पास दिनभर की सबसे ताज़ा खबर रहती है जिसे हम अक्सर नज़रन्दाज कर देते हैं, कभी–कभी जानबूझकर। माँ कह रही थी कि अपने इलाके में किसी आदमी ने किसी नेता को गोली मारकर सरेआम हत्या कर दी। माँ के कहने में अफ़सोस से ज्यादा चेतावनी रहती है कि बाहर संभलकर रहा करो। इस महीने में ऐसी घटना मैं चौथी बार सुन रही हूँ। आजकल गोली खाकर मरने वालों की संख्या बहुत बढ़ गई है। देश की बॉर्डर पर शांति है, हँगामा तो देश के भीतर हो रहा है। एक आम नागरिक की तरह योग्यता को भी फिक्र हुई कि इस देश का क्या होगा। जितना बड़ा ये सवाल है उससे ज्यादा बड़ा ‘अफ़सोस!’ 

माँ से बात होने के बाद उसको याद आया कि आज उसको भरत से मिलने जाना था। भरत उसका अच्छा दोस्त था और इन दिनों संगीत के पीछे पागल था। वो घर के कपड़ों में ही भरत के घर चली गई जो पास ही में था।

संगीत के बिना जीवन कैसा होता?” योग्यता ने भरत से पूछा।

“बहरा!” भरत ने एक लंबी साँस लेकर कहा।

वो अनुष्का शंकर का राग जोग सुनने लगे। उँगलियाँ जादूगर हैं। उनका चलना यानि मन का चलना। छुअन कितने तरह की हो सकती है- क्रोध, घृणा, प्रेम... 

सामने खाई थी और उसका एक पंख कटा हुआ था। मृत्युलोक कोई रास्ता नहीं होता, सिर्फ़ एक और पंख कटने की देर! मृत्यु एक क्षण का धोखा है, धोखा देने वाला कोई अपरिचित। क्या किसी को खत्म होने से रोका जा सकता है? मौसम में जरा सा बदलाव हुआ और सब बदल गया। कितने आसानी से मौसम हमपर हावी हो जाते हैं, उसने सोचा। मन कितने जल्दी बहल और बहक सकता है। 

“योग्यता, कहाँ खो जाती हो?”

“किसी एक चीज़ के पीछे जीवनभर भागना, भागते रहना, कितना उबाऊ है!”

“क्या तुम्हें ठहरे रहना पसंद है?”

“अनेक चीजों को साथ लेकर धीमी गती से जीना पसंद है।“

“क्या तुम्हें लगता नहीं कि हमारे पास वक्त कम है?” भरत की आवाज में अचानक गंभीरता आ गई। 

“वैसे भी ,कम वक्त में हमें जाना ही कहाँ हैं ?”

वो सवाल का जवाब सवाल से देती थी पर ऐसा लगता था मानो उसके सवाल में कहीं अर्धविराम छिपा हुआ है जो उसके कहने को बीच हवाँ में लटका रहा हो। ‘लटकना’—हाँ, उसने ठीक यहीं कहा था। 

“हम लटके हुए प्राणी हैं; हम न तो ठीक से ठहर सकते हैं न चल सकते हैं।“ वह तबतक उठ चुकी थी और खिड़की से झुककर किसी पागल को गाता हुआ सुन रही थी।

“हम कभी इतने पागल नहीं हो सकते!“ योग्यता ने भरत से कहा। 

“क्यूँ?”

“क्यूँकी पागल होने के लिए हिम्मत चाहिए होती है, कायर लोग कभी पागल नहीं हो सकते; वे अंत तक केवल इंसान बने रह सकते हैं... “ किसी से बात करते–करते वो ख़ुद से बातें करने लगती थी, यह उसकी बचपन की आदतों में से एक आदत थी। साढ़े नौ बज रहे थे, भरत ने उससे खाना खाकर जाने के लिए कहा पर उसने मना कर दिया क्योंकि उसके हॉस्टल का गेट १० बजे बंद हो जाता है इसलिए उसने कहा उसे जाना पड़ेगा। हॉस्टल लौटते वक्त उसे वो लड़की फ़िर दिखी। वो पास के एक स्टेशनरी शॉप से एक नोटबुक और पेन खरीद रही थी, उन पैसों से जो उसे भीख में मिले थे। वो सड़क पर रहती है, सोती है, इस वजह से लोग उसे भिखारी कहते हैं। मुझे उसका नाम नहीं पता बस इतना जानती हूँ कि वो एक कुँवारी लड़की है। उसके बगल में हमेशा एक झोला लटका रहता है, जिसमें उसने अबतक खरीदी सारी नोटबुक्स रखीं होगी। वो कभी अपना झोला ख़ुद से अलग नहीं होने देती। वो एक हॉस्पिटल के सामने बैठी रहती है और नोटबुक में कुछ लिखती रहती है या स्क्रिबल करती रहती है। भरत ने भी बहुत बार उसके नोटबुक में झाँकने की कोशिश की थी पर अफ़सोस देखने की कोशिश असफल रही। भरत जितना देख पाया उसने इतना ज़रूर देखा कि वो हिंदी में लिखती है। वो एक पढ़ी–लिखी लड़की है, शायद घर से भागी होगी या कोई घर नहीं होगा, पता नहीं पर वो एक नोटबुक और पेन के दाम के आगे भीख नहीं माँगती।

ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो बेघर हैं और सड़क के किनारे ग्रुप में भीख माँगने बैठ जाते हैं। वे सब पढ़े–लिखे लोग हैं। सड़क से आते–जाते वक्त मैंने कई बार उनकी बातें सुनी हैं। देश से लेकर दुनिया तक उन्हें सारी ख़बरें हैं। भारत की राजनीति से लेकर विदेश की फिलोसॉफी तक वो डिबेट कर सकते हैं। मैंने उन्हे रोज़ अखबार पढ़ते देखा है। ताज्जुब की बात है कि हमारे देश के महान फिलोसॉफर्स सड़क पर भीख माँगते हैं।

लौटते वक्त मैंने उस लड़की को देखा, वो अपनी नोटबुक और पेन लेने में खुश थी। आज उसे देखकर मेरा मन किया कि बात कर ही लू पर मेरे उस तक पहुँचने तक वो अपने ठिकाने पर जाकर बैठ गई थी। योग्यता सीधे अपने हॉस्टल गई। मौसम में सूखापन छाया हुआ है। ये गर्मियाँ आने के पहले के दिन हैं। हर जगह पैरों के नीचे सूखे पत्तों के कुचले जाने की आवाज़ आती है।

“शिशिर लग गया!” योग्यता मन में सोच रही है। मैं जब कल लौटी थी तब सामने बादाम के पेड़ में बुढ़ापा आ गया था। सड़क पर खून के चीथड़े उड़े हो और हम उसपर चल रहे हों,ऐसा मुझे उन पत्तों पर चलने से पहले ही लगा फिर मैं चलने लगी। अचानक मैं रुक गई, मैंने देखा मेरी ट्रैवल बैग का एक पहिया कहीं अटक गया है; वो मरी हुई गिलहरी थी। ऐसे ही सड़क पार करने की कोशिश में किसी गाड़ी का व्हील उसपर चढ़ गया होगा। मरे हुए इंसान को फ़िर से मारना इस दुनिया में गुनाह नहीं है, क्या ये कायदे जानवरों पर भी लागू हो सकते हैं?

घर जाने से पहले मैंने उस गिलहरी को एक–दो बार उसी बादाम के पेड़ पर चढ़ते देखा था, एक पलक झपकने की देर और वह पेड़ पर चढ़कर अदृश्य हो जाती थी। क्या वो भी इस पेड़ की तरह बूढ़ी हो गई थी; जो अभी उन खून के धब्बों के मृत पड़ी थी!

योग्यता अपने रूम में जाते ही लेट गई। उसे आज सुबह से कुछ तो भीतर ही भीतर खाए जा रहा है। जीवन में आकस्मिक घटनाएं ही चौंकाती हैं। गिनवाने की ज़रूरत नहीं कि आकस्मिक क्या–क्या हो सकता हैं। ऐसी ही आकस्मिक घटनाओं से वो खुश भी हुई थी और दुःखी भी। उसके साथ–साथ दुनिया के तमाम लोग भी इसी तरह खुश और दुखी हुए होंगे। घटनाओं के बिना जीवन नहीं घटता। कुछ दिन पहले की बात है, योग्यता भरत के साथ कहीं से लौट रही थी और सड़क पर अभी भी कोलाहल था, शायद नौ बजे होंगे। गर्मियों में दिनों के साथ ही लोगों की दिनचर्या लंबी हो जाती है। एक लंबा दिन, दिन के कई दिन, कई साल। चलते–चलते यूँ ही एक खुश होने वाली आकस्मिक घटना घटी थी। वो उसके बालों में मोगरे का गजरा लगा रहे थे। न तो वो उसके पिता थे न प्रेमी। कुछ लगने जैसा रिश्ता दूर–दूर तक नहीं था। हाँ पर मैंने पिछले एक साल से उस बुजुर्ग को रोज़ वहाँ बैठे देखा है। फूटपाथ पर बैठकर वो फूल बेचते हैं।‘फूल’ जो अनेक घटनाओं पर अलग–अलग तरह के काम करते हैं। ईश्वर बदल जाते हैं पर फूल कभी कोई एक धर्म नहीं अपनाते। उनके लिए हर मृत इंसान समान है, न ही वो प्रेम की अलग भाषा जानते हैं। वो बुजुर्ग फूल बेचकर जीते हैं। तीस रुपए में गुलाब का एक गुच्छा।

“बीस रुपए में दे रहा हूँ, दस–बीस कम मत देना!”

“ हाँ बाबा! तीस रुपए ही दे रही हूँ!”

मैंने पहले सोचा था कि तीस रुपए में एक गुलाब दे रहे हैं; पूरा गुच्छा सुनकर मेरा दिल भी खिल उठा था। उसने पहली बार फूल खरीदे थे; उसने पहली बार किसी के लिए फूल खरीदे थे। अपनी दोस्त के लिए; अपनी दोस्त जैसी दोस्त के लिए।

“लड़कियाँ को फूल दिए जाते हैं क्या?” भरत ने योग्यता से थोड़ा चौंककर पूछा।

“तो क्या हुआ, एक लड़की एक लड़की को फूल नहीं दे सकती!”

पैसे देने के बाद वो बुजुर्ग उसे बैठने बोले। 

“गजरे के पैसे नहीं लूंगा, वैसे भी अब घर ही जाना है।”

बचे हुए फूल फेंकने से अच्छा किसी के बालों में लगाना उन्हें ज्यादा सही लगा होगा।

अपने कंधे तक बढ़े बालों में गजरा कैसे लगेगा ये सोचकर उसे सही भी गलत लगा होगा। पर वो बुजुर्ग सही थे और वो गलत। बिना कोई पिन लगाए उन्होंने उसके छोटे बालों में गजरा लगाया। गजरे का धागा बांधने बालों का धागा बनाया था। वो उसकी खुशी देखकर खुश थे, वो अपनी खुशी देखकर खुश थी और वो दूर खड़ा हुआ गुलाब और मोगरे की खुशबू से खुश था।सड़क पर कितने राहचलते लोगों ने उसे देखा होगा; पर उस दिन मैंने किसी को नहीं देखा था। पहली बार, शायद! 

उदास होने वाली आकस्मिक घटना भी उसके रास्ते में थी पर वो उससे बेखबर हाथ में गुलाब लिए हॉस्टल जा रही थी। हॉस्टल थोड़ा दूर था पर होने वाली घटनाएं जो हम सोचते हैं कि होंगी, वो उन्हें घटते देख रही थी।

बीच में कई दिन बीत गए। आकस्मिक घटना को अब वो याद नही करना चाहती पर इसके साथ ही वो चाहती है कि वो कभी भी कायर न बने। अभी अँधेरा है और वो देख रही है धूप में छाँव को गिरते हुए। धूप भी तस्वीर में है और छाँव भी। कितना मुश्किल होता है अपने पूरे दिन में से जीए हुए को अलग निकालना। अपने स्वयं में भी पूरा स्वयं कहाँ होता है भला!

लोग उसे घूरते हैं, कुत्तों की तरह पीछा करते हैं, सिर्फ इसलिए कि वो अपने बचे हुए स्वयं को बचाना चाहती है। हर वो इंसान जो कायर है वो दूसरो को डराना जानता है। वो किसी को मारना जानता है, लूटना जानता है। डर क्या चीज़ होती है, पता है? अपने–आप से भरोसा उठ जाना, किसी और की वजह से!

अपने पिता की बात मेरे कानों में गूंजती है—“कभी कायर मत बनना!”

उसने यह सुना था, उस कमरे में जहाँ उन्होंने उसे पहली बार आज़ाद कर दिया था!

वो अभी भी कमरे की सीलिंग देख रही है, उसकी पलकें नहीं झपक रहीं, ऐसा लग रहा है मानो वो आँखें खोलकर सो रही है।

उसकी रूममेट कुछ दिनों के लिए अपने घर गई है। योग्यता अपने कमरे में अकेली है। उसको जीवन में कुछ बनना नहीं है पर उसको सब करना है। अपने समाज में कुछ करने से ज्यादा कुछ बनने पर ज्यादा जोर दिया जाता है। डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, आर्किटेक्ट से लेकर किसी का भाई, किसी की बहन, किसी का पति हो या किसी की पत्नी, सब को कुछ न कुछ बनाया जाता हैं। योग्यता हमेशा से इन सब से भागना चाहती थी पर अभी वो रुकी हुई थी। देखते ही देखते वो कब सो गई उसे पता ही नहीं चला।

अगले दिन सुबह जब मैं कॉलेज जा रही थी तब देखा कि एक दुकानदार उस कुंवारी लड़की के झोले को उसकी दुकान के सामने से लात मारकर सड़क पर फेंक रहा था। उसकी सारी नोटबुक्स झोले में से निकलकर सड़क पर गिर गई।

वह दुकानदार चिढ़कर उन नोटबुक्स पर थूँका और वहाँ से चला गया। जो लोग इस तमाशे का लुफ्त उठा रहे थें वो भी अपने–अपने रास्ते हो लिए। वो लड़की जब अपनी नोटबुक्स समेटने लगी तब मैंने उसकी मदद करनी चाही। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। वो अपनी नोटबुक्स को लेकर चूम रही थी। अपने हाथ में उठाई एक नोटबुक लेकर मैंने उससे पूछा “क्या मैं इसको पढ़ सकती हूँ?”

बिना जवाब दिए वो मुस्करा दी और उसने अपना सिर हिलाकर हामी भारी। उस वक्त मुझे पता चला कि वो गूँगी है। मैंने वो नोटबुक खोली और मैं चौंक गई। पहले पन्ने पर नाम लिखा था—श्रेया दत्त। २०२३ की सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली ऑथर। नोटबुक में जो लिखा था उसे पढ़कर वो उपन्यास की पांडुलिपि जैसा कुछ लग दिख रहा था। मैंने जब उससे पूछा कि इसमें ‘श्रेया दत्त’ का नाम क्यों लिखा है, तब उसने मुझे लिखकर बताया कि वो उनके लिए घोस्ट राइटिंग करती है। ये बात सुनकर मुझे धक्का सा लगा। 

“और बदले में पैसे कितने मिलते है?” मैंने उस लड़की से पूछा।

उसने फिर लिखकर बताया कि ४० हज़ार एक उपन्यास के।

“फिर तुम सड़क पर क्यों रहती हो?”

उसने बताया कि उसकी एक छोटी बहन है, उसको एक बड़े स्कूल में भर्ती करवाया है, वो वहीं हॉस्टल में रहती है। सारे पैसे वो उसके लिए लगा देती है ताकि उसको उसकी तरह सड़क पर न सोना पड़े। मैंने उसमें लिखी कहानी पढ़नी चाही जिसमें शुरवात कुछ ऐसी थी —“जीवन एक सड़क है जिसपर हमें कोने से चलना पड़ता हैं। टेढ़ा चले तो ठोकर खाओगे और बीच में चले तो मारे जाओगे!”

योग्यता कॉलेज पहुँची तब पहला लेक्चर शुरू हो चुका था। वो बीए के दूसरे साल में पढ़ रही है जो हालही में शुरू हुआ है। उसे आज अचानक सब झूठ लगने लगा। प्रोफेसर बता रहे थे कि पिछले साल कॉलेज में टॉप कौन किया है। उनकी नज़रों में एग्जाम टॉप करने वाले सबसे होशियार स्टूडेंट्स होते हैं। वो कह रहे थे कि वो बच्चे जीवन में बहुत आगे बढ़ेंगे। योग्यता को हँसी आ रही थी जबकि पूरी क्लास एकदम सीरियस होकर सब सुन रही थी। भरत ने उसे हँसते हुए देखा और मुँह पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया। ब्रेक में भरत ने उससे उसके हँसने की वजह पूछी तो उसने बताया कि यहाँ सब लोग नाटक कर रहे हैं। एजुकेशनल इंस्टिट्यून्स ने परीक्षाओं को बच्चों की काबिलियत का टैग दे दिया है। उधर कहीं तो लोग दो–तीन किताबें छपवाकर महान लेखक बनकर पुरस्कृत हो रहे हैं। जनता के सेवक जनता पर ही दादागिरी कर रहे हैं। योग्यता ने भरत को सुबह की सारी घटना बता दी। उसे सुनकर भरत भी भौचक्का रह गया। भरत ने कहा कि उसे भी उस लड़की की लिखी कहानियाँ पढ़नी है। वो कॉलेज से सीधे वहाँ गए जहाँ वो हमेशा लिखने बैठती है। 

जब हम दोनों वहाँ पहुँचे तब वो वहाँ पर नहीं थी, हमने आसपास भी थोड़ा ढूँढा फिर भी हमें वो कहीं नहीं मिली। अचानक वो यहाँ से चली गई सोचकर हमें बेचैनी होने लगी। कई दिन गुज़र गए, अगले एक साल तक उस सड़क पर वो दुबारा कभी नहीं दिखी पर उस सड़क के किनारों पर ‘श्रेया दत्त’ की किताबें ज़रूर बिकती दिखी। उसने सही कहा था कि जीवन एक सड़क है जिसपर हमें कोने से चलना पड़ता हैं। वह जीवन से जीत गई थी और सड़क उसके सामने हार चुकी थी!

~स्मृतियाँ

11/02/2022




Comments

Popular posts from this blog

पहचानना प्रेम

लकीरें