//तुम जहाँ भी रहते हो//
ये आदतन रूठी निगाहें
ये महकी–महकी बाहें
कि दिल फ़रिश्ता बन बैठा है
तुम्हारा नाम सुनकर
ये उजला सा नूर
ये लब, ये सुरूर
मानो ख़ुदा ने भेजे हैं
एक पैग़ाम बनकर
ज़िंदगी है की मानती नहीं
तुम किसी की चाह हो
मैं जो भटक जाता हूँ
तुम वीराने की राह हो
तुम्हारी तस्वीर को देख
मेरा मन ये बातें करता है
कि तुम जहाँ भी रहते हो
मेरा दिल भी वहीं रहता है
स्मृतियाँ,
(१९ जनवरी)
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