लकीरें



हम मिट्टी से बने,

ऊपर से पत्थर दिल पर भीतर से टूटे हुए लोग हैं

जिन्होंने घरों से लेकर ईश्वर तक 

पहाड़ों से लेकर नदियों तक बस लकीरें खींच डाली


पर धरती पर चार लकीरें खींचने से 

और उन चार हिस्सों को चार नाम देने मात्र से

दुनिया नहीं बनती है दोस्त

दुनिया बनाने के लिए लकीरें तोड़नी पड़ती हैं

पर हमने न लकीरें तोड़ी

न अपने उस टूटे हुए हिस्से के बारे में कुछ कहा


वैसे कितना कुछ कहा जा सकता था

टूटे हुए सपनों के बारे में

रूठे हुए अपनों के बारे में

पैरों के घाव के बारे में

छोड़े हुए गांव के बारे में

गुज़र गए लोगों के बारे में

और कितना कुछ था लिखने को...


पर हम चुप रहें;

चुप रहें,

इसलिए नहीं कि हमें कहना नहीं आता

बस इसलिए क्योंंकि

टूटे हुए पर लेकर परिंदे सिर्फ़ 

आसमान की ओर इशारा कर सकते हैं 

पर किसी को उड़ना नहीं सीखा सकते।


स्मृतियाँ,

(२०२२)


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