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"अकेलेपन से एकांत की ओर l"

 २८/०६/२०२४ एक वक़्त बाद अकेलापन इतना अकेला महसूस होने लगता है मानो वहाँ हमारा होना भी एक भ्रम जैसा हो| ख़ुद से बात करने के लिए कुछ नहीं बचता| कुछ नया करने से पहले ही मन ऊब जाता है| अकेलापन चुभना शुरू कर देता है| हम खोजने लगते है एक ऐसी जगह जहाँ से सब कुछ इतना भरा हो कि हमें अकेलापन का पता ही न चले| अंततः हम व्यस्तता का हाथ थाम लेते है| (अकेलापन तब खलने लगता है जब हम अकेले होने का मूल्यांकन करना शुरू कर देते है|) फ़िलहाल मैं छत के एक कोने में बैठकर अपने आसपास की दुनिया को देख रहा हूँ| कितनी अस्थिर है दुनिया| लगातार भाग रही है भीड़ से अकेलेपन की ओर और अकेलेपन से भीड़ की तरफ़| कुछ को कहीं-न-कहीं पहुँचने की जल्दी है और कुछ को कहीं लौटने में अभी देरी है| हालाँकि मुझे इस पल में ठहरे रहने का सुख, दूसरों के दुःखों को महसूस करके नहीं गवाना है|  आज पहाड़ काफ़ी साफ़ दिख रहे है| पंछी आसमान में लम्बी और ऊँची उड़ान भर रहे हैं| कितना सुख मिलता है प्रकृति के आश्चर्य से बार-बार आश्चर्यचकित होने में| एक ठंडी हवा का झोका जैसे ही बदन छूता है वैसे ही एक सिरहन भीतर दौड़ लगाने लग जाती है| मैं भूल गय...

पहचानना प्रेम

 पहचानना प्रेम ————— जब मन हो  बहते नल सा और पानी का भी  संकट हो  जब जेबें हों  ख़ाली ख़ाली  और मन  घर भामाशाह का हो  दिल बजे  कुकर की सीटी सा  कोई दाल भात  में घी सा लगे   कोई दाल भात  में घी सा लगे  चलती लू में  आये वो और बर्फ़ का  गोला हो जाओ  चलती लू में  आये वो और बर्फ़ का  गोला हो जाओ  किसी के आने  भर से जब  महके दोपहर  रातरानी सी  जब खड़ी हो वो  दरवाज़े पर  और चैन  साईकल की उतरे  जब ऐंठ हो  नई अमीरी सी  और आसमान पर  पाँव पड़े  जब ना सोचा  भी हो जाये  तभी समझना  प्रेम में हो 

यू ही

 8:29 रात के कुछ पौने पांच बज रहे हैं.. कमरे में बहुत धीमी रोशनी है उस रोशनी में मेरी परछाईं नाच रही है.. खुशी से नहीं बहुत गम में। कमरे की दीवारें सुन रहे हैं ये पंक्ति जाना तुमको जाना हो तो मत आना। कुछ देर पहले ही विक्रांत मेस्सी का इन्टरव्यू देखा.. और एकदम नज़दीक़ खुद को टूटा हुआ हताश महसूस किया है। हर बार टूट जानें पर तुम एक ही शख्स के पास बार-बार नही जा सकते हो इसलिए नही की वो तुमसे थक जाएगा बस इसलिए क्योंकि तुम खुद से थक चुके हो। उदासी से भरा शरीर सिर्फ़ एक लाश है जिसे देखनें सुननें का श्राप है। ~प्रवीण स्मृतीया 

सफर

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 12:43  तुमसे प्रेम करना ही मेरे सबसे कठिन कार्यों में से था।उस व्यक्ति से प्रेम करना बहुत सरल होता है , जिसके इर्द-गिर्द केवल हवाएं बहती हो सूखें पत्तों कि आवाजें आती हो ,मगर तुम्हारे इर्द-गिर्द तो केवल लोग है, तुम्हारा हाथ थामने के लिए भी न जाने मुझे कितनी आँखों की गिरफ्त से गुज़रना पड़ेगा।

"विपदा "

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  भविष्य की सबसे बड़ी  विपदा हो सकती है  ज़मीन का सूखना, हालाँकि वर्तमान की सबसे  बड़ी विपदा है  मानव की सिसकियों का सूखा पड़ना|

//तुम जहाँ भी रहते हो//

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  ये आदतन रूठी निगाहें ये महकी–महकी बाहें  कि दिल फ़रिश्ता बन बैठा है तुम्हारा नाम सुनकर ये उजला सा नूर ये लब, ये सुरूर मानो ख़ुदा ने भेजे हैं  एक पैग़ाम बनकर ज़िंदगी है की मानती नहीं तुम किसी की चाह हो मैं जो भटक जाता हूँ तुम वीराने की राह हो तुम्हारी तस्वीर को देख मेरा मन ये बातें करता है कि तुम जहाँ भी रहते हो मेरा दिल भी वहीं रहता है स्मृतियाँ, (१९ जनवरी)

पुराने और साधारण दिन

कुछ नया, कुछ अलग की ख़ोज में हम पुराने और साधारण हो जाते हैं... [ये पुराने और साधारण दिन हैं]   मेरे पास फ़िलहाल कुछ ऐसा नहीं है जिसे मैं नया कह सकूं। जिससे सबको बता सकूं कि मैं तुमसे अलग हूँ। अलग होना असल में अलग रहने से शुरू होता है। मैं हमेशा से सबसे अलग रहना चाहता था। इसलिए नहीं कि मुझे अलग होना था, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि मुझे उस शून्य को सुनना था जो बचपन में घर में अकेले खेलते वक्त सुनाई देता था। गर्मियों की छुट्टियों में ताश की ईमारत बनाता था। डर हवा का था कि एक ताश का पत्ता हिला तो सारे ताश मिट्टी में मिल जाएंगे। तब नहीं पता था कि जीवन उस एक ताश के पत्ते पर टिका हुआ है। जो सबके लिए अलग हो सकता है। मुझे इस नये घर में भी पुराना घर दिखता है। अब वो सपनों में भी आने लगा है। ख़ासकर वो एक खिड़की जो मेरे लिए धूप और बारिश दोनों को छूने का जरिया थी। स्कूल से विदा लेने तक वहाँ पढ़ाई की थी। पढ़ाई से ज्यादा वहाँ बैठकर लिखा था। लिखना यानी कुछ भी लिखना, जो मन बहलाने के लिए काफ़ी हो। हज़ार बातें हैं जिसे यादें कह सकते हैं।  हम कमरे में कभी अकेले नहीं रहते, हमेशा कोई न कोई छिपकली हमसे पहल...