वह सोच रही थी कि कौन सी किताब पढ़ी जाएं। पढ़ने के लिए बहुत सारा हैं पर चुनने के लिए बहुत कम। उसने अधूरी पढ़ी किताब चुनी। उस अधूरे पढ़े को कई महीने हो गए हैं। किताब लेकर वो बैठ गई पर वो अब किताब नहीं पढ़ रही है बल्कि अपने दिनभर के थकान का हिसाब लगा रही है। उस वक्त का हिसाब लगा रही है जब वो अपने होश खो बैठी थी। साथ ही सोच रही है कि और किस चीज़ का हिसाब लगाया जाए। हालाँकि वो हिसाब–किताब में अच्छी खासी कच्ची है। कोई उससे कुछ पैसे उधार ले जाए तो उसको वापस माँगना नहीं आता। कोई मज़ाक में चाय पिलाने को कह दे तो सच में चाय पीला देती है। एक बार किसी ने उससे कहा था “योग्यता तुम अपने दिमाग की सुना करो, दिल की सुनोगी तो भटक जाओगी।“ उस दिन के बाद उसने अपनी दिल की सुनना छोड़ दिया। आज कॉलेज से आने में उसको देर हो गई क्योंकि रास्ते में ट्रैफिक इतना था कि पैदल चलने वाले लोग गाड़ियों से आगे निकल रहे थे। सड़क पर गाड़ियों की संख्या देखकर मैं डर गई थी। सुविधाएं किस हद तक जा रही हैं, इंसान कभी हद में नहीं रह सकता, उसको हमेशा सब हद के बाहर चाहिए। बस से उतरके उसको एक सड़क पार करनी पड़ती थी। वहाँ से एक सँकरी गली ...
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