यू ही
8:29
रात के कुछ पौने पांच बज रहे हैं.. कमरे में बहुत धीमी रोशनी है उस रोशनी में मेरी परछाईं नाच रही है.. खुशी से नहीं बहुत गम में।
कमरे की दीवारें सुन रहे हैं ये पंक्ति जाना तुमको जाना हो तो मत आना।
कुछ देर पहले ही विक्रांत मेस्सी का इन्टरव्यू देखा.. और एकदम नज़दीक़ खुद को टूटा हुआ हताश महसूस किया है।
हर बार टूट जानें पर तुम एक ही शख्स के पास बार-बार नही जा सकते हो इसलिए नही की वो तुमसे थक जाएगा बस इसलिए क्योंकि तुम खुद से थक चुके हो।
उदासी से भरा शरीर सिर्फ़ एक लाश है जिसे देखनें सुननें का श्राप है।
~प्रवीण
स्मृतीया
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