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पहचानना प्रेम

 पहचानना प्रेम ————— जब मन हो  बहते नल सा और पानी का भी  संकट हो  जब जेबें हों  ख़ाली ख़ाली  और मन  घर भामाशाह का हो  दिल बजे  कुकर की सीटी सा  कोई दाल भात  में घी सा लगे   कोई दाल भात  में घी सा लगे  चलती लू में  आये वो और बर्फ़ का  गोला हो जाओ  चलती लू में  आये वो और बर्फ़ का  गोला हो जाओ  किसी के आने  भर से जब  महके दोपहर  रातरानी सी  जब खड़ी हो वो  दरवाज़े पर  और चैन  साईकल की उतरे  जब ऐंठ हो  नई अमीरी सी  और आसमान पर  पाँव पड़े  जब ना सोचा  भी हो जाये  तभी समझना  प्रेम में हो 

यू ही

 8:29 रात के कुछ पौने पांच बज रहे हैं.. कमरे में बहुत धीमी रोशनी है उस रोशनी में मेरी परछाईं नाच रही है.. खुशी से नहीं बहुत गम में। कमरे की दीवारें सुन रहे हैं ये पंक्ति जाना तुमको जाना हो तो मत आना। कुछ देर पहले ही विक्रांत मेस्सी का इन्टरव्यू देखा.. और एकदम नज़दीक़ खुद को टूटा हुआ हताश महसूस किया है। हर बार टूट जानें पर तुम एक ही शख्स के पास बार-बार नही जा सकते हो इसलिए नही की वो तुमसे थक जाएगा बस इसलिए क्योंकि तुम खुद से थक चुके हो। उदासी से भरा शरीर सिर्फ़ एक लाश है जिसे देखनें सुननें का श्राप है। ~प्रवीण स्मृतीया 

सफर

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 12:43  तुमसे प्रेम करना ही मेरे सबसे कठिन कार्यों में से था।उस व्यक्ति से प्रेम करना बहुत सरल होता है , जिसके इर्द-गिर्द केवल हवाएं बहती हो सूखें पत्तों कि आवाजें आती हो ,मगर तुम्हारे इर्द-गिर्द तो केवल लोग है, तुम्हारा हाथ थामने के लिए भी न जाने मुझे कितनी आँखों की गिरफ्त से गुज़रना पड़ेगा।