पहचानना प्रेम
पहचानना प्रेम ————— जब मन हो बहते नल सा और पानी का भी संकट हो जब जेबें हों ख़ाली ख़ाली और मन घर भामाशाह का हो दिल बजे कुकर की सीटी सा कोई दाल भात में घी सा लगे कोई दाल भात में घी सा लगे चलती लू में आये वो और बर्फ़ का गोला हो जाओ चलती लू में आये वो और बर्फ़ का गोला हो जाओ किसी के आने भर से जब महके दोपहर रातरानी सी जब खड़ी हो वो दरवाज़े पर और चैन साईकल की उतरे जब ऐंठ हो नई अमीरी सी और आसमान पर पाँव पड़े जब ना सोचा भी हो जाये तभी समझना प्रेम में हो